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महिला सशक्तिकरण की वर्तमान स्थिति : राजनैतिक सशक्तिकरण के परिप्रेक्ष्य में। (69th BPSC Essay)
“यदि आप किसी समाज की प्रगति को मापना चाहते हैं, तो उसमें महिलाओं की स्थिति को देखें।” – पंडित जवाहरलाल नेहरू
महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनैतिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे वे अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें और समाज में समानता प्राप्त कर सकें। विशेष रूप से राजनैतिक सशक्तिकरण महिलाओं को शासन व्यवस्था में भागीदारी सुनिश्चित करने, नीति निर्माण में योगदान देने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने पर बल देता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में महिलाओं की भागीदारी समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है। संविधान में महिलाओं को समान अधिकार दिए गए हैं, फिर भी उनकी राजनीतिक भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि समाज की समग्र प्रगति भी होगी।
वर्तमान समय में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे बढ़ रहा है, फिर भी यह अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंचा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत महिलाओं को समान अधिकार दिए गए हैं। 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई, जिससे जमीनी स्तर पर उनकी भागीदारी बढ़ी है। भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती जैसी प्रभावशाली महिला नेता उभरकर आई हैं, जिन्होंने विभिन्न स्तरों पर शासन किया है। संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 33% आरक्षण का प्रस्तावित विधेयक कई वर्षों से लंबित था, जिसे 2023 में पारित किया गया। इससे महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा।
“जब तक नारी भय मुक्त नहीं होगी, तब तक समाज प्रगति नहीं कर सकता।” – स्वामी विवेकानंद
महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के मार्ग में कई बाधाएँ हैं। महिलाओं को राजनीति में प्रवेश करने से रोका जाता है, क्योंकि पारंपरिक रूप से इसे पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है। आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण कई योग्य महिलाएँ चुनावी प्रक्रिया में भाग नहीं ले पातीं। अधिकांश राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने में हिचकिचाते हैं, जिससे उनकी भागीदारी सीमित रहती है। महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की हिंसा और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को अधिक टिकट देना और उन्हें नेतृत्व की भूमिका में बढ़ावा देना आवश्यक है। महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर देना, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। सामाजिक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना और सख्त कानूनों और नीतियों के माध्यम से महिलाओं के प्रति हिंसा और भेदभाव को समाप्त करना भी जरूरी है। इसके अलावा, महिला नेतृत्व को मजबूत करने के लिए एक ऐसे वातावरण का निर्माण आवश्यक है, जहाँ महिलाएँ बिना किसी डर के अपने विचार व्यक्त कर सकें और नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
महिला सशक्तिकरण, विशेषकर राजनीतिक सशक्तिकरण, देश के विकास के लिए अनिवार्य है। हालाँकि महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, फिर भी इसे और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है। उचित नीतियों, सामाजिक परिवर्तन और जागरूकता के माध्यम से महिलाओं को राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। जब महिलाएँ राजनीति में प्रभावशाली पदों पर होंगी, तभी एक सशक्त, समान और विकसित समाज की परिकल्पना साकार हो सकेगी।
“जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो परिवार, समाज और राष्ट्र आगे बढ़ता है।” – इंदिरा गांधी
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5. महिला सशक्तिकरण की वर्तमान स्थिति राजनैतिक सशक्तिकरण के परिप्रेक्ष्य में.pdf