अपने अनिवार्य कर्तव्य का पालन करें क्योंकि कर्म निश्चय ही निष्क्रियता से उत्तम है।(Perform your obligatory duty because action is indeed better than inaction.)

अपने अनिवार्य कर्तव्य का पालन करें क्योंकि कर्म निश्चय ही निष्क्रियता से उत्तम है। (68th BPSC Essay)

मानव जीवन में कर्तव्य का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक दिशा है। किसी भी समाज, राष्ट्र या संगठन की स्थिरता और प्रगति उसके सदस्यों द्वारा अपने कर्तव्यों के उचित निर्वहन पर निर्भर करती है। निष्क्रियता या कर्तव्य से विमुख होना केवल व्यक्ति के जीवन को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को भी कमजोर कर सकता है। यही कारण है कि श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्क्रियता छोड़कर अपने अनिवार्य कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा दी थी। उन्होंने कहा था कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” अर्थात मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता किए बिना उसे अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

कर्तव्य का अर्थ वह कार्य है जिसे करना आवश्यक हो, जिसे करने से समाज, परिवार और राष्ट्र का हित होता है। यह एक नैतिक दायित्व भी है, जिसका पालन प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। कर्तव्य का पालन समाज में संतुलन बनाए रखता है और एक व्यवस्थित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हो जाता है, तो यह न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र को भी अव्यवस्थित कर सकता है।

एक व्यक्ति अपने जीवन में कई भूमिकाएँ निभाता है—पुत्र, पिता, माता, शिक्षक, छात्र, कर्मचारी आदि। इन सभी भूमिकाओं से जुड़े कुछ नैतिक और सामाजिक दायित्व होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करता है, तो न केवल वह स्वयं संतुष्ट रहता है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनता है। उदाहरण के लिए, एक विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपनी शिक्षा पर ध्यान दे और अनुशासन का पालन करे, जिससे वह अपने जीवन में सफल हो सके।

एक परिवार तभी सफल होता है जब उसके सभी सदस्य अपने कर्तव्यों को समझते और निभाते हैं। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को सही दिशा दें और उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखें। वहीं, बच्चों का कर्तव्य है कि वे माता-पिता का आदर करें और उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरें। यदि कोई भी सदस्य अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है, तो परिवार में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

समाज के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह समाज के नियमों का पालन करे, दूसरों की सहायता करे और एक सकारात्मक वातावरण बनाए। एक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह अपने छात्रों को शिक्षा के साथ नैतिकता का भी पाठ पढ़ाए। यदि कोई व्यक्ति अपने सामाजिक कर्तव्यों की अनदेखी करता है, तो इससे समाज में असंतोष और अव्यवस्था फैल सकती है।

राष्ट्र की उन्नति उसके नागरिकों और शासकों के कर्तव्य पालन पर निर्भर करती है। सरकार के विभिन्न अंगों जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपने-अपने दायित्वों का पालन करना आवश्यक है। जनप्रतिनिधियों को जनता की सेवा करनी चाहिए, प्रशासनिक अधिकारियों को निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए, और न्यायपालिका को सत्य और न्याय की रक्षा करनी चाहिए। यदि ये संस्थाएँ अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाती हैं, तो राष्ट्र में अराजकता और भ्रष्टाचार फैल सकता है।

निष्क्रियता एक ऐसी स्थिति है जब कोई व्यक्ति, समाज या संगठन अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है। यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत विकास को बाधित करती है, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र को भी हानि पहुँचाती है। यदि एक नागरिक अपने अधिकारों की माँग करता है, लेकिन अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो यह समाज में असंतुलन उत्पन्न कर सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि सरकार के कर्मचारी अपने कर्तव्यों के प्रति निष्क्रिय हो जाएँ, तो देश में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था फैल सकती है। इसी प्रकार, यदि शिक्षक अपने दायित्वों का पालन न करें, तो आने वाली पीढ़ी अज्ञानता के अंधकार में चली जाएगी। निष्क्रियता समाज को पतन की ओर ले जाती है, इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने अनिवार्य कर्तव्यों को प्राथमिकता दें।

कर्तव्य पालन की भावना को बढ़ावा देने के लिए बचपन से ही नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। बच्चों को यह सिखाना आवश्यक है कि अपने अधिकारों के साथ-साथ उन्हें अपने कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग अपने कर्तव्यों से विमुख न हों। इसके लिए विभिन्न नियम-कानून बनाए गए हैं, जैसे सरकारी अधिकारियों के लिए सेवा शर्तें और आचार संहिता, जिससे वे अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य हों।

समाज में ऐसे लोगों को सम्मानित किया जाना चाहिए जो अपने कर्तव्यों का पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। इससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी और वे अपने कार्यों को गंभीरता से लेंगे। व्यक्ति को स्वयं यह समझना होगा कि उसका कर्तव्य केवल समाज और राष्ट्र के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के आत्म-संतोष और विकास के लिए भी आवश्यक है। आत्म-अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

कर्तव्य पालन किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है। निष्क्रियता केवल पतन की ओर ले जाती है, जबकि कर्मशीलता व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर अग्रसर करती है। इसीलिए गीता में कहा गया है कि निष्क्रियता से अच्छा है कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करें। हमें यह समझना चाहिए कि कर्म करने से ही समाज और राष्ट्र का विकास संभव है। इसीलिए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है—

“नर हो, न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो।”

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