राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश की सुरक्षा / Political Will and National Security

राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश की सुरक्षा (70th BPSC Essay)

किसी भी राष्ट्र की स्थिरता, प्रगति और समृद्धि का मूल आधार उसकी सुरक्षा व्यवस्था होती है। सुरक्षा केवल सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि आंतरिक शांति, आर्थिक मजबूती, तकनीकी विकास, सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक अखंडता का भी समावेश करती है। इन सभी पहलुओं को सशक्त और सुरक्षित रखने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है। राजनीतिक इच्छाशक्ति वह मानसिक दृढ़ता और साहस है, जो नेतृत्व को कठिन से कठिन निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

राजनीतिक इच्छाशक्ति का अर्थ है– देशहित में बिना किसी दबाव या निजी स्वार्थ के निर्णायक कदम उठाना। जब नेतृत्व में यह गुण होता है, तभी राष्ट्र कठिन चुनौतियों का सामना कर पाता है और सुरक्षा के क्षेत्र में ठोस उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकता है। यदि राजनीतिक नेतृत्व संकोच या असमंजस में रहता है, तो सुरक्षा तंत्र भी कमजोर पड़ता है और राष्ट्र विविध आंतरिक एवं बाह्य खतरों का शिकार बन सकता है।

देश की सुरक्षा बहुआयामी होती है। बाहरी सुरक्षा के लिए सैनिक बल, रक्षा तकनीक और कूटनीति की आवश्यकता होती है, जबकि आंतरिक सुरक्षा के लिए कानून व्यवस्था, सामाजिक एकता, भ्रष्टाचार नियंत्रण और आर्थिक मजबूती जरूरी है। इन सभी मोर्चों पर सफलता तभी संभव है जब राजनीतिक नेतृत्व दृढ़ निश्चयी हो। उदाहरण के लिए, जब देश पर आतंकवाद, अलगाववाद या विदेशी आक्रमण का संकट आता है, तब केवल सैनिक ताकत पर्याप्त नहीं होती, बल्कि त्वरित और प्रभावशाली राजनीतिक निर्णय भी आवश्यक होते हैं।

भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहाँ राजनीतिक इच्छाशक्ति ने देश की सुरक्षा को नई दिशा दी। 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिस तरह की निर्णायक भूमिका निभाई, वह आज भी राजनीतिक इच्छाशक्ति का उदाहरण मानी जाती है। बांग्लादेश के निर्माण में उनकी सक्रियता और साहस ने भारत की सुरक्षा स्थिति को भी मजबूत किया। इसी प्रकार, कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन नेतृत्व ने सेना को पूर्ण स्वतंत्रता और समर्थन प्रदान किया, जिससे भारत ने विजय प्राप्त की।

आधुनिक समय में भी जब साइबर हमले, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, जैविक युद्ध जैसे नए खतरे सामने आ रहे हैं, तब राजनीतिक इच्छाशक्ति और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। अब युद्ध का स्वरूप बदल गया है। सीमाओं पर टैंक और तोप के मुकाबले डिजिटल नेटवर्क, वित्तीय तंत्र और सूचनाओं की लड़ाई अधिक घातक सिद्ध हो रही है। इन खतरों से निपटने के लिए ठोस रणनीति, तत्पर निर्णय और दृढ़ इच्छाशक्ति की अत्यधिक आवश्यकता है। यदि राजनीतिक नेतृत्व समय पर आवश्यक कदम उठाए, तो इन खतरों को प्रभावी ढंग से निष्फल किया जा सकता है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रभाव केवल रक्षा नीतियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि रक्षा उत्पादन, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने में भी नजर आता है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल और स्वदेशी रक्षा उपकरणों के निर्माण में तेजी लाने के निर्णय, राजनीतिक इच्छाशक्ति के उदाहरण हैं। यदि कोई राष्ट्र अपनी रक्षा सामग्री के लिए पूरी तरह विदेशी स्रोतों पर निर्भर रहता है, तो उसकी सुरक्षा सदैव खतरे में रहती है। आत्मनिर्भरता के लिए मजबूत राजनीतिक संकल्प की आवश्यकता होती है।

इसके साथ ही आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी राजनीतिक इच्छाशक्ति अत्यंत आवश्यक है। आतंकवाद, नक्सलवाद, सांप्रदायिकता, और भ्रष्टाचार जैसे आंतरिक संकटों से निपटने के लिए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। यदि नेतृत्व कमजोर होगा या किसी दबाव में आकर निर्णय लेगा, तो देश की आंतरिक स्थिति अस्थिर हो सकती है।

साथ ही, जनता का विश्वास भी तभी बना रहता है जब नेतृत्व में दृढ़ता और पारदर्शिता होती है। राजनीतिक इच्छाशक्ति का एक पहलू यह भी है कि वह निर्णय लेने में जनता के हित को सर्वोपरि रखे, न कि केवल तात्कालिक लोकप्रियता को। जब जनता यह महसूस करती है कि उसके नेता राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं, तो वह स्वयं भी राष्ट्रहित में योगदान करने को प्रेरित होती है।

महात्मा गांधी ने कहा था–
“You may never know what results come from your actions. But if you do nothing, there will be no result.”
(तुम्हें यह कभी पता नहीं चलेगा कि तुम्हारे कार्यों का क्या परिणाम निकलेगा, लेकिन यदि तुम कुछ नहीं करोगे तो कोई परिणाम नहीं निकलेगा।)

यह कथन राजनीतिक इच्छाशक्ति के महत्व को प्रतिपादित करता है। कोई भी पहल तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक नेतृत्व में साहसिक कदम उठाने की दृढ़ता न हो।

वैश्विक परिदृश्य में भी हम देखते हैं कि जिन देशों का नेतृत्व दृढ़ इच्छाशक्ति रखता है, वे वैश्विक शक्तियों के बीच अपना सम्मानजनक स्थान बना पाते हैं। अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों ने समय-समय पर अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देकर अपनी सुरक्षा और प्रभुता को कायम रखा है। भारत भी अब इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, और उसका कद वैश्विक मंच पर निरंतर बढ़ रहा है।

अंततः, यह निष्कर्ष निकलता है कि देश की सुरक्षा केवल रक्षा बलों की ताकत पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति पर भी उतनी ही निर्भर है। दृढ़ संकल्प, स्पष्ट दृष्टि, साहसिक निर्णय और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने वाली राजनीतिक इच्छाशक्ति ही देश को भीतर और बाहर से सुरक्षित कर सकती है। इसीलिए, समय की मांग है कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व में यह गुण सदैव बना रहे, ताकि भारत एक सशक्त, सुरक्षित और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर अपना स्थान और मजबूत कर सके।

Download Pdf 👇

5. राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश की सुरक्षा.pdf

Scroll to Top