काले धन की अर्थव्यवस्था अपराध और भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। (Black money economy is the main cause of crime and corruption)

काले धन की अर्थव्यवस्था अपराध और भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। (69th BPSC)

“भ्रष्टाचार और काले धन का प्रसार समाज की जड़ों को खोखला कर देता है, और यह एक ऐसा दानव है जो देश की आर्थिक, सामाजिक और नैतिक प्रगति को बाधित करता है।” – चाणक्य

काले धन की अर्थव्यवस्था अपराध और भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। वास्तव में, काले धन जैसी कोई वस्तु नहीं होती। धन, धन ही होता है। काला या सफेद क्या? किंतु फिर भी ‘काला धन’ और ‘सफेद धन’ में कुछ मूलभूत अंतर देखा जा सकता है। ‘सफेद धन’ वह होता है, जो वैध तरीकों से अर्जित किया जाता है, जिसका हिसाब रखा जाता है और जिस पर आयकर या अन्य करों का भुगतान किया जाता है। यह एक आदर्श अर्थव्यवस्था में लेन-देन किये जाने वाले सभी पैसे का हिसाब रखता है और सरकार को टैक्स इकट्ठा करने में मदद करता है। इसके विपरीत, उचित लेखांकन के बिना नकद लेन-देन को ‘काला धन’ कहा जाता है। अर्थशास्त्र में इसकी कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। कुछ लोग इसे ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ के नाम से जानते हैं, तो कुछ इसे काली आय, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था भी कहते हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो काला धन वह आय है, जिसे कर अधिकारियों से छिपाने का प्रयास किया जाता है। यह सरकारी प्रणाली से छिपा रहता है और भारत की सकल राष्ट्रीय आय एवं अन्य आर्थिक मापदंडों में प्रतिबिंबित नहीं होता।

हालाँकि, काला धन एक वैश्विक समस्या है, लेकिन भारत में इसकी स्थिति अत्यंत भयावह है। बैंक ऑफ इटली की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ‘टैक्स हेवेन’ में भारत की हिस्सेदारी 152-181 बिलियन डॉलर या लगभग 10 लाख करोड़ रुपये है। वहीं, ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट के अनुसार, काला धन पैदा करने के मामले में भारत दुनिया में आठवें स्थान पर है। काले धन के स्रोत मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, अवैध गतिविधियाँ जिनमें अर्जित धन कर अधिकारियों से छिपाया जाता है और इसे काले धन की श्रेणी में रखा जाता है। द्वितीय, वे कानूनी गतिविधियाँ जिनमें अर्जित आय को कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता। भारत में काले धन के प्रमुख स्रोतों में बेनामी लेन-देन, हवाला, टैक्स हेवेन देशों में धन भेजना, रियल एस्टेट और शेल कंपनियों में निवेश शामिल हैं। काले धन की उत्पत्ति का प्रमुख कारण आयकर और कॉर्पोरेट कर की उच्च दरें, जटिल कर प्रणाली, भ्रष्टाचार, अवैध व्यापार तथा चुनाव प्रचार की अत्यधिक लागत है।

काला धन केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी देखा जा सकता है। काले धन में वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह सरकार के राजस्व में कमी लाता है। कुछ लोग इसे ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ मानते हैं, क्योंकि यह धारणा है कि वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर एक और अर्थव्यवस्था चल रही है। चूंकि कर भुगतान से बचने के लिए काले धन का उपयोग किया जाता है, इसलिए इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी गिरावट आती है। सरकारी राजस्व में कमी आने के कारण सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर समुचित खर्च नहीं कर पाती, जिससे सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इसके अलावा, गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ केवल उन्हीं लोगों को मिल पाती हैं, जो अधिकारियों को रिश्वत देते हैं। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था में काले धन की अधिक मात्रा भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देती है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी प्रचार में बड़े पैमाने पर काले धन का उपयोग किया जाता है, जो अंततः राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को जन्म देता है। इसके अलावा, काला धन देश की साख को भी प्रभावित करता है। इसे अक्सर अनैतिक और अवैध गतिविधियों, जैसे- हथियारों व मानव तस्करी, नशीले पदार्थों के व्यापार और संगठित अपराधों के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आतंकवाद एवं अलगाववादी गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है, जिससे देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा को खतरा होता है।

भारत सरकार ने काले धन की समस्या से निपटने के लिए कई वैधानिक, संस्थागत और नीतिगत प्रयास किए हैं। भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए कई विधायी प्रयास किए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं- 1988 में बना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी लेन-देन निषेध अधिनियम, 1988 तथा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002। इसके अतिरिक्त, काले धन तथा भ्रष्टाचार से जुड़ी गतिविधियों की निगरानी और निवारण के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), प्रवर्तन निदेशालय (ED) और लोकपाल व लोकायुक्त जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई है। इसके अलावा, नीतिगत उपायों में ‘आय घोषणा योजना’ तथा ‘विमुद्रीकरण’ (नोटबंदी) जैसे कदम शामिल हैं।

भारत ने काले धन के रोकथाम के लिए वैश्विक स्तर पर भी कुछ पहलों का समर्थन किया है। इनमें ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (FATF) प्रमुख है, जो आतंकवादी गतिविधियों में काले धन के उपयोग को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने की दिशा में नीतियाँ विकसित करता है। हालाँकि, केवल कानूनी उपायों से इस समस्या को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसे जड़ से मिटाने के लिए सामाजिक और सामुदायिक प्रयासों की भी आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण है नैतिकता का उत्थान। नैतिक मूल्यों की यह शिक्षा बचपन से ही समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ शुरू होनी चाहिए।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था, “यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त और नैतिक रूप से समृद्ध बनाना है, तो माता-पिता और शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगी।” स्पष्ट है कि काले धन की समस्या पर स्थायी रूप से अंकुश लगाने के लिए समाज का नैतिक रूप से जागरूक होना आवश्यक है। इस संदर्भ में बौद्ध दर्शन में वर्णित ‘अपरिग्रह’ (पंच महाव्रत) तथा ‘सम्यक आजीविका’ (अष्टांगिक मार्ग) जैसे सिद्धांत अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं।

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