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कोविड के बाद बदलाव माँगती शिक्षा। (68th BPSC Essay in Hindi)
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, और समय के साथ हर क्षेत्र में बदलाव अनिवार्य हो जाता है। शिक्षा भी इससे अछूती नहीं रही है। विशेष रूप से, कोविड-19 महामारी ने विश्व की शिक्षा व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और यह एहसास कराया कि पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है। महामारी के दौरान शिक्षा का डिजिटल रूप से विस्तार हुआ, ऑनलाइन कक्षाओं का चलन बढ़ा और तकनीक आधारित शिक्षण प्रणाली को अपनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया। अब, जब कोविड का प्रभाव कम हो गया है, यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षा व्यवस्था को पुराने स्वरूप में लौटाने के बजाय आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप बदला जाए।
कोविड महामारी के दौरान स्कूल-कॉलेज बंद होने के कारण शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ऑनलाइन हो गई। विद्यार्थी स्मार्टफोन, लैपटॉप, कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाई करने लगे। ऑनलाइन क्लासेज, वर्चुअल लैब्स, ई-लाइब्रेरी, वेबिनार और डिजिटल पाठ्यक्रम जैसे नए माध्यम अपनाए गए। हालाँकि, यह बदलाव मजबूरी में हुआ, लेकिन इसने शिक्षा में तकनीक की उपयोगिता को स्पष्ट कर दिया। महामारी ने दिखाया कि शिक्षा केवल विद्यालयों और कक्षाओं तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे तकनीकी रूप से सक्षम बनाया जाना चाहिए ताकि हर विद्यार्थी तक ज्ञान की पहुँच सुनिश्चित हो सके।
भारत में शिक्षा व्यवस्था पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रही थी, जिन्हें कोविड-19 ने और उजागर कर दिया। डिजिटल संसाधनों की कमी, तकनीकी ज्ञान का अभाव, विद्यार्थियों की मानसिक एवं शारीरिक समस्याएँ और मूल्यांकन प्रणाली की पारदर्शिता जैसे मुद्दे महामारी के दौरान सामने आए। भारत में केवल 24% घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, और ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत और भी कम है। डिजिटल संसाधनों की कमी के कारण लाखों विद्यार्थियों की शिक्षा बाधित हुई। इसके अलावा, ऑनलाइन शिक्षण के लिए आवश्यक डिजिटल कौशल कई शिक्षकों के पास नहीं था, जिससे प्रभावी शिक्षण में कठिनाई हुई। ऑनलाइन कक्षाओं के कारण बच्चों में एकाकीपन, मानसिक तनाव और आँखों की समस्याएँ बढ़ीं। पारंपरिक शिक्षा के अभाव में विद्यार्थियों का सामाजिक विकास बाधित हुआ। ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखना भी एक चुनौती थी, जिससे कई बार छात्रों के वास्तविक प्रदर्शन का आकलन करना कठिन हुआ।
भारत सरकार ने 2020 में नई शिक्षा नीति (NEP-2020) लागू की, जिसका उद्देश्य शिक्षा को अधिक समावेशी, लचीला और रोजगारपरक बनाना था। कोविड के बाद इस नीति को सही मायने में ज़मीन पर उतारने की ज़रूरत है। अब समय आ गया है कि ‘हाइब्रिड लर्निंग मॉडल’ को अपनाया जाए, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा को संतुलित किया जाए। इससे विद्यार्थियों को डिजिटल संसाधनों का लाभ मिलेगा और वे शारीरिक रूप से विद्यालय जाकर भी सीख सकेंगे। शिक्षकों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए नियमित डिजिटल ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ताकि वे नए माध्यमों से प्रभावी शिक्षण कर सकें। ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती इंटरनेट सुविधा और डिजिटल उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी ताकि वहाँ के विद्यार्थी भी ऑनलाइन शिक्षा का लाभ उठा सकें। पारंपरिक विषयों के साथ-साथ विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षा, स्वरोजगार, कला, साहित्य, संगीत, जैविक कृषि, और आयुर्वेद जैसे व्यावहारिक कौशल भी सिखाए जाने चाहिए ताकि वे केवल नौकरी पर निर्भर न रहें, बल्कि आत्मनिर्भर भी बन सकें।
शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए मूल्यांकन प्रणाली को भी दुरुस्त करने की आवश्यकता है। ऑनलाइन परीक्षाओं को अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके अलावा, सतत आकलन (Continuous Assessment) की प्रणाली अपनाई जानी चाहिए ताकि विद्यार्थियों के वास्तविक प्रदर्शन को आंका जा सके। विद्यार्थियों में केवल व्यावसायिक दक्षता नहीं, बल्कि मानवीय और नैतिक मूल्यों का विकास भी किया जाना चाहिए ताकि वे समाज के जिम्मेदार नागरिक बन सकें।
ऑनलाइन शिक्षा भविष्य की आवश्यकता है, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं। स्क्रीन टाइम बढ़ने से विद्यार्थियों की सेहत पर असर पड़ सकता है, और सामाजिक कौशलों का विकास बाधित हो सकता है। इसलिए, ऑनलाइन शिक्षा को एक पूरक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न कि पारंपरिक शिक्षा का संपूर्ण विकल्प बनाया जाना चाहिए। इसके लिए ‘ब्लेंडेड लर्निंग मॉडल’ को अपनाने की जरूरत है, जिसमें कक्षा में शिक्षण के साथ-साथ डिजिटल संसाधनों का भी प्रयोग किया जाए।
कोविड महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा को लचीला, समावेशी और तकनीकी रूप से सक्षम बनाने की आवश्यकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ डिजिटल असमानता एक बड़ी चुनौती है, वहाँ शिक्षा व्यवस्था में तकनीक का उपयोग सोच-समझकर किया जाना चाहिए। ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षा का संतुलन बनाकर, शिक्षकों और छात्रों को डिजिटल रूप से प्रशिक्षित करके, और मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली अपनाकर ही हम एक समृद्ध और उन्नत भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं। बदलाव का यह समय है, और हमें इसे केवल एक कठिनाई के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखना चाहिए ताकि हम एक नई और बेहतर शिक्षा प्रणाली का निर्माण कर सकें।
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