Table of Contents
जंगल अपने पेड़ स्वयं तैयार करता है। यह लोगों के जंगल में आकार बीज फेंकने का इंतजार नहीं करता है। (68th BPSC Essay)
“स्वावलंबन ही सच्चा आत्म-सम्मान है।” – महात्मा गांधी
प्रकृति सदैव हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने और सिखाने का कार्य करती है। इसका हर तत्व किसी न किसी प्रकार से हमें आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का संदेश देता है। जंगल इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, क्योंकि यह अपने अस्तित्व और विस्तार के लिए किसी बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं रहता। जंगल में नए पेड़-पौधे किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा बोए गए बीजों से नहीं, बल्कि स्वयं जंगल के ही वृक्षों से गिरने वाले बीजों से उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया हमें एक महत्वपूर्ण जीवन-दर्शन प्रदान करती है—जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करने के बजाय स्वयं प्रयास करना चाहिए।
जब हम जंगल का अवलोकन करते हैं, तो पाते हैं कि यह स्वयं के संसाधनों से अपनी निरंतरता बनाए रखता है। इसमें जन्म, विकास, और पुनरुत्पत्ति का एक चक्र चलता रहता है। वृक्ष अपने ही बीजों को गिराते हैं, और वे बीज स्वयं अंकुरित होकर नए वृक्ष का रूप ले लेते हैं। जंगल अपने लिए आवश्यक जल, पोषण, और पारिस्थितिक संतुलन स्वयं बनाए रखता है। इसे किसी बाहरी तत्व की आवश्यकता नहीं होती, न ही यह बाहरी हस्तक्षेप की प्रतीक्षा करता है। इसी प्रकार, यदि मनुष्य भी अपने जीवन में आत्मनिर्भरता को अपनाए और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्व-प्रेरित होकर कार्य करे, तो वह किसी भी ऊँचाई तक पहुँच सकता है।
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ लोगों ने बिना किसी बाहरी मदद की प्रतीक्षा किए स्वयं अपने प्रयासों से महानता प्राप्त की। गौतम बुद्ध का जीवन इस विचारधारा का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने बिना किसी गुरु की सहायता के कठोर तपस्या और आत्मचिंतन के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया। जब उनके शिष्य आनंद ने पूछा कि आपके बाद हमें कौन मार्ग दिखाएगा, तो बुद्ध ने उत्तर दिया— “अप्प दीपो भव” अर्थात् “स्वयं अपना दीपक बनो।” यह संदेश हमें बताता है कि हमें अपनी राह स्वयं बनानी होगी, किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
महात्मा गांधी का जीवन भी आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। उन्होंने बिना किसी विदेशी सहायता के भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए ‘स्वदेशी आंदोलन’ चलाया और आत्मनिर्भरता को बल दिया। उन्होंने हमें सिखाया कि हमें अपने संसाधनों का उपयोग करके अपने विकास की दिशा तय करनी चाहिए।
विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता का सिद्धांत साफ देखा जा सकता है। थॉमस एडिसन ने हजारों असफल प्रयासों के बाद स्वयं के प्रयासों से विद्युत बल्ब का आविष्कार किया। जेम्स वाट ने बिना किसी बाहरी सहायता की प्रतीक्षा किए भाप के इंजन का आविष्कार किया, जिसने औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया। आइंस्टीन, न्यूटन और निकोला टेस्ला जैसे वैज्ञानिकों ने भी अपने आत्मबल और निरंतर प्रयासों से नए सिद्धांत प्रतिपादित किए, जो आज संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी हैं।
आज के वैश्विक परिदृश्य में भी आत्मनिर्भरता का महत्व बना हुआ है। यदि कोई देश अपने विकास के लिए केवल दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करता रहे, तो वह कभी भी सशक्त राष्ट्र नहीं बन सकता। भारत ने इस तथ्य को समझते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहल की शुरुआत की है।
भारत के विकास के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करे और अपने उत्पादन को बढ़ावा दे। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाएँ इसी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए शुरू की गई हैं। भारत ने अपने वैज्ञानिक कौशल और आत्मनिर्भरता के बल पर मंगलयान और स्वदेशी नौपरिवहन प्रणाली ‘नाविक’ विकसित की। कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति को सफल बनाने में भारतीय वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने बाहरी प्रेरणा अवश्य ली, लेकिन आत्मनिर्भरता के बल पर भारत की कृषि उत्पादन क्षमता को बढ़ाया।
केवल राष्ट्र या समाज ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी आत्मनिर्भरता अत्यंत आवश्यक है। यदि हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करेंगे, तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। आत्मनिर्भरता न केवल व्यक्ति को सफल बनाती है, बल्कि उसे आत्मसम्मान भी प्रदान करती है। जब व्यक्ति अपने प्रयासों से सफलता प्राप्त करता है, तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। जीवन में जो लोग आत्मनिर्भर होते हैं, वे किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानते। वे समस्याओं का समाधान स्वयं खोजते हैं और अपने परिश्रम से अपनी राह बनाते हैं।
जंगल हमें सिखाता है कि यदि हमें आगे बढ़ना है, तो हमें अपने प्रयासों पर विश्वास रखना होगा। जंगल अपने लिए किसी बाहरी सहायता की प्रतीक्षा नहीं करता, बल्कि स्वयं अपने बीजों से नए पेड़ तैयार करता है। यही सिद्धांत हमें अपने जीवन में भी अपनाना चाहिए। यदि हम भी आत्मनिर्भर बनकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होंगे, तो हमें कोई रोक नहीं सकता। दूसरों की सहायता की आशा में बैठे रहना हमें कमजोर बना सकता है, लेकिन आत्मनिर्भरता हमें सशक्त बनाती है। इसी सोच को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में व्यक्त किया गया है—
“नर हो, न निराश करो मन को; कुछ काम करो, कुछ काम करो।”