भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तथा बचाव के उपाय। (Impact of climate change on Indian agriculture and prevention measures)

भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तथा बचाव के उपाय। (69th BPSC Essay)

“खुदा का शुक्र है कि इंसान उड़ नहीं सकता और आसमान व धरती दोनों को ही बरबाद नहीं कर सकता।”- हेनरी डेविड थोरो

अमेरिकी प्रकृतिविज्ञानी ‘हेनरी डेविड थोरो’ का यह कथन इंसानों द्वारा आधुनिकता की अंधी दौड़ हेतु प्रकृति से किये गए अंधाधुंध छेड़‌छाड़ की गवाही देता है। आज विश्व में चारों ओर विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में भारी वृद्धि देखी जा रही है। आज विश्व के विभिन्न क्षेत्रों रेगिस्तानी क्षेत्रों में भारी बारिश एवं बाढ़, शहरी एवं पेड़-पौधों से समृद्ध क्षेत्रों में व्यापक सूखा तथा आर्कटिक एवं अंटार्कटिक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बर्फ के लगातार तीव्र गति से पिघलने की घटनाएँ सामने आ रही हैं। एक तरफ जहाँ अमेजन जैसे जंगलों में आग की व्यापक घटनाएँ देखी जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर लगभग आधे-से-अधिक दुनिया पानी की कमी से सूखे की मार भी झेल रही है। बदलते मौसमी पैटर्न के साथ न केवल चक्रवातों की वारंवारता में वृद्धि हुई है, बल्कि वर्षा पैटर्न में भी व्यापक बदलाव आए हैं। इन प्रक्रियाओं का प्रमुख कारण मनुष्यों द्वारा अपने विकास के क्रम में की गई अनेकों गतिविधियों के परिणामस्वरूप हुआ जलवायु परिवर्तन ही है।

हम जानते हैं कि इस जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल इन बड़ी घटनाओं के स्वरूप में ही नहीं, बल्कि कुछ अन्य आंतरिक प्रक्रियाओं पर भी व्यापक रूप से पड़ रहा है। इनके परिणाम हमें सामान्यतया तो दिखाई नहीं देते. किंतु एक वृहत् स्तर पर मूल्यांकन करने पर इनके प्रभावों से हुई क्षति का आकलन किया जा सकता है। इन्हीं में से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला एक क्षेत्र है- ‘कृषि क्षेत्र’।

भारत जैसा देश, जहाँ प्रारंभ से ही बच्चों को यह बताया जाता है कि ‘भारत एक कृषि प्रधान देश है,’ कृषि की योग्य अधिकतर जमीन सिंचाई हेतु मानसून पर निर्भर है। इसकी कृषि प्रणाली को जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों के व्यापक दुष्परिणाम होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। हम जानते हैं कि कृषि भारत में भोजन की सुनिश्चितता, पोषण एवं जीविका की सुरक्षा का भी एक प्रमुख साधन है। जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण के तापमान में निरंतर बढ़ोतरी हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की गुणवत्ता का हास, प्रति व्यक्ति जमीन की कमी, कुल बोये गए क्षेत्र की होने वाली निष्क्रियता ने देश के 80% से अधिक छोटे एवं मध्यम किसानों को प्रत्यक्ष रूप से एवं संपूर्ण देश को किसी-न-किसी रूप से प्रभावित किया है।

हालिया आँकड़ों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक माध्य तापमान में वार्षिक वृद्धि वर्ष 2025 तक 1°C तथा वर्ष 2100 तक 3°C होने का अनुमान है। साथ ही, वर्ष 2024-2028 के बीच में कम-से-एक वर्ष का तापमान 105°C से अधिक होने का 80% अनुमान है। तापमान में यह वृद्धि न केवल ग्लेशियर को पिघलाएगी तथा समुद्र स्तर में वृद्धि करेगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में भी इजाफा करेगी। इस प्रकार से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हमें फसलों की उत्पाद‌कता में हास, लोगों के कुपोषण में वृद्धि, पौधों से संबंधित बीमारियों एवं कोटों के विकास के क्रम में परिवर्तन के रूप में देखने को मिल सकता है। भारत में 68% कृषि सिंचित क्षेत्र देश के कुल कृषि उत्पादन में 40-45% का योगदान करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण आगे कुछ वर्षों में वर्षा पैटर्न में परिवर्तनशीलता एवं तीव्रता में वृद्धि होने का अनुमान है जिसका भारत के कृषि क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

भविष्य के अतिरिक्त पिछले कुछ वर्षों में भी जलवायु परिवर्तन के कारण हुई कुछ मौसमी घटनाओं के चलते देश के विभिन्न क्षेत्रों की कृषि प्रणालियों में व्यापक परिवर्तन दर्ज किये गये है। इन मौसमी घटनाओं, जैसे कि बेमौसम बारिश, मानसून का असमान वितरण और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहरों के कारण कई फसलों, जैसे कि चावल, गेहूँ, दालें और तिलहन आदि के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

आमतौर पर कृषि प्रणाली में गेंहूँ की फसल पर किये गए शोध एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के तहत यह पता चला है कि 30°C के तापमान से 1°C ऊपर जाने पर गेहूं की फसल की उपज में 3-4% की गिरावट होती है। जुलाई 2023 में अत्यधिक वर्षा के कारण, पहाड़ी राज्यों-हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में सब्जी उत्पादन प्रभावित हुआ, जिससे देश घर में टमाटर की कीमतों में वृद्धि हुई। गत वर्षों में गेहूं की फसल की कटाई से ठीक पहले हुई बेमौसम बारिश से पैदावार पर व्यापक असर पड़ा है। वर्ष 2022 में, मार्च महीने में गर्मी की लहर के कारण उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में तापमान 35° के आसपास दर्ज किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दाने सिकुड़ गए एवं उपज में व्यापक कमी दर्ज की गई। इस घटना के कारण भारत, जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है, उसे घरेलू बाजार के लिये स्टॉक बनाने हेतु गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।

हालाँकि कृषि उपजों से संबंधित ऐसी विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मलेन आयोजित किये गए हैं, किंतु विशेषकर कृषि के क्षेत्र में भी नवीन उपाय किये जा सकते हैं। जैसे कि कृषि को जलवायु के अनुकूल बनाने के संदर्भ में पिछले साल गेहूँ किसानों को हुई भीषण गर्मी की समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकार ने किसानों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि इस साल कुल बोए गए क्षेत्र 34 मिलियन हेक्टेयर के 60% से अधिक में किसानों द्वारा जलवायु प्रतिरोधी किस्मों की बुआई की जाए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) ने 1,956 उच्च उपज देने वाली तनाव-सहिष्णु किस्मों और क्षेत्रीय फसलों अनाज, तिलहन, दालों एवं अन्य फसलों की संकर किस्मों को जारी किया है, जिनमें से 1622 जलवायु के अनुकूल हैं। आईसीएआर द्वारा जलवायु अनुकूल एकीकृत कृषि प्रणालियों के लिये 45 मॉडल विकसित किये हैं। ‘जलवायु लचीले कृषि में राष्ट्रीय नवाचार’ परियोजना के अंतर्गत 151 जिलों में से प्रत्येक में एक जलवायु लचीला गाँव विकसित किया गया है।

“जब तक प्रकृति से प्रेम नहीं करोगे, तब तक जीवन में सच्ची शांति नहीं मिलेगी।”- रवींद्रनाथ टैगोर

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