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समकालीन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की महत्ता (70th BPSC Essay)
आज के वैश्विक परिदृश्य में भारत एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में स्थापित हो रहा है। जिस प्रकार एक समय विश्व में औद्योगिक क्रांति ने नए शक्ति केंद्र बनाए थे, उसी प्रकार 21वीं सदी में भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक संतुलन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। भारत की बढ़ती जनसंख्या, सशक्त लोकतंत्र, आर्थिक प्रगति, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक धरोहर ने उसे विश्व समुदाय में एक अनिवार्य भूमिका प्रदान की है।
भारत की भू-राजनीतिक स्थिति उसकी महत्ता को और अधिक बढ़ा देती है। एशिया के हृदय में स्थित भारत, दक्षिण एशिया के देशों के लिए न केवल एक आर्थिक साझेदार है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी एक स्थिर शक्ति के रूप में देखा जाता है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती उपस्थिति, ‘इंडो-पैसिफिक’ रणनीति में उसकी सक्रिय भागीदारी और क्षेत्रीय सहयोग संगठन जैसे सार्क, बिम्सटेक तथा शंघाई सहयोग संगठन में उसकी भूमिका उसे एक निर्णायक खिलाड़ी बनाती है।
आर्थिक दृष्टि से देखें तो भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने भी भारत की विकास दर को सराहा है। भारत का स्टार्टअप ईकोसिस्टम, डिजिटल इंडिया अभियान, मेक इन इंडिया पहल तथा वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक वातावरण उसे विश्व अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख इंजन बना रहे हैं। आज गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शीर्ष पदों पर भारतीय मूल के अधिकारी कार्यरत हैं, जो भारत की वैश्विक क्षमता का परिचायक है।
तकनीकी क्षेत्र में भारत की भूमिका भी उल्लेखनीय है। सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान, फार्मास्यूटिकल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत ने अद्वितीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इसरो द्वारा किए गए चंद्रयान और मंगलयान अभियानों ने विश्वभर में भारत की वैज्ञानिक क्षमता का लोहा मनवाया है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने “वैक्सीन मैत्री” कार्यक्रम के तहत अनेक देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराकर ‘विश्व गुरु’ की अपनी परंपरागत भूमिका को पुनः सशक्त किया।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत का प्रभाव व्यापक है। योग, आयुर्वेद, भारतीय खानपान, हिंदी भाषा और बॉलीवुड जैसी सॉफ्ट पावर न केवल एशिया, बल्कि यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका तक भारतीय संस्कृति को लोकप्रिय बना रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकार किया जाना भारत के सांस्कृतिक प्रभाव का जीवंत उदाहरण है। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) की भावना आज वैश्विक मंचों पर शांति और समरसता का संदेश देती है।
राजनीतिक स्तर पर भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को विश्व के अनेक देशों का समर्थन प्राप्त है। भारत जी-20 जैसे वैश्विक मंचों पर भी अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है। हाल ही में भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभालकर वैश्विक विकास और समावेशी वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत पहल की हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी भारत ने “वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर” जैसे दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।
भारत की विदेश नीति में “बहुपक्षीयता” और “स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी” की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जैसी जटिल अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भी भारत ने संतुलित और स्वतंत्र नीति अपनाई है। ‘क्वाड’ (QUAD) समूह में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी हो या ब्रिक्स (BRICS) देशों के साथ आर्थिक सहयोग, भारत हर मंच पर अपनी उपस्थिति प्रभावी बना रहा है।
भारत की युवा जनसंख्या भी उसकी वैश्विक महत्ता में योगदान कर रही है। जहाँ विकसित देश वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं भारत में लगभग 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यह ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ भारत को भविष्य में विश्व के लिए ज्ञान, श्रम और नवाचार का केंद्र बना सकता है। इसके साथ ही, शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास पर भारत का बढ़ता हुआ ध्यान उसकी भविष्य की वैश्विक भूमिका को और सशक्त करेगा।
हालाँकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। गरीबी, असमानता, पर्यावरणीय संकट, सामाजिक संघर्ष जैसे मुद्दे भारत की आंतरिक मजबूती को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम, जैसे सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को अपनाना, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना और डिजिटल समावेशन की दिशा में कार्य करना, यह दिखाते हैं कि भारत न केवल अपनी समस्याओं को पहचानता है, बल्कि उनका समाधान भी खोज रहा है।
भारत के इस बढ़ते वैश्विक प्रभाव को प्रसिद्ध विचारक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के शब्दों में समझा जा सकता है
“भारत एक विकसित राष्ट्र बन सकता है यदि हम अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें और उन्हें सही दिशा में प्रयुक्त करें।”
आज भारत उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। अपनी ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक दृष्टिकोण के संतुलन के साथ भारत वैश्विक मंच पर न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, बल्कि नीतियों और सिद्धांतों के माध्यम से विश्व को दिशा भी दे रहा है।
इसलिए, समकालीन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की महत्ता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। आने वाले वर्षों में भारत न केवल एक आर्थिक या सैन्य शक्ति के रूप में, बल्कि नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में भी विश्व पटल पर अपनी पहचान और मजबूत करेगा।
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