जइसन बोअबड ओइसने कटबड | Jaisan Boabad Oisane Katbad

जइसन बोअबड ओइसने कटबड (70th BPSC Essay)

एक समय की बात है, एक किसान के दो बेटे थे। किसान अपने जीवन भर की मेहनत से खेत जोतता, बीज बोता और फसल काटता था। बड़े बेटे ने अपने पिता के काम में रुचि ली, मेहनत की और समझदारी से व्यवहार किया। छोटा बेटा आलसी था, पिता की सीखों को हल्के में लेता था। जब समय आया, पिता ने दोनों को अलग-अलग खेत दिए। बड़े बेटे ने मन लगाकर अच्छी खेती की, समय पर बुवाई की, सिंचाई की और देखभाल की। वहीं छोटा बेटा मौज-मस्ती में लगा रहा। जब फसल का समय आया, बड़े बेटे के खेत में सोने जैसी फसल लहलहा रही थी, जबकि छोटे बेटे का खेत बंजर पड़ा था। तब पिता ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, याद रखो, जइसन बोअब ओइसने कटब।”

यह कहावत, जो पूर्वी भारत विशेषकर भोजपुरी, मगही और मैथिली क्षेत्रों में प्रसिद्ध है, जीवन का एक गहरा सत्य व्यक्त करती है। इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति जो जैसा कर्म करेगा, वैसा ही फल पाएगा। यह सिद्धांत न केवल हमारे सामाजिक जीवन में लागू होता है, बल्कि हमारे व्यक्तिगत, नैतिक और आध्यात्मिक विकास में भी इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है—
“जैसी करनी वैसी भरनी।”
अर्थात् मनुष्य को अपनी करनी का फल अवश्य भोगना पड़ता है। यह विचार मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य सिद्ध होता है।

जब हम बीज बोते हैं, तो उसी के अनुरूप फसल उगती है। यदि हम गेहूं बोते हैं, तो गेहूं उगेगा; यदि बबूल बोते हैं, तो कांटे ही मिलेंगे। ठीक इसी तरह यदि हम अपने जीवन में अच्छे कार्य करते हैं, तो सुख और सफलता प्राप्त होती है, और यदि बुरे कर्म करते हैं, तो दुख और विपत्ति को भोगना पड़ता है।

यह कहावत केवल कृषि या जीवन यापन तक सीमित नहीं है। यह हमारे व्यवहार, सोच और चरित्र पर भी लागू होती है। एक ईमानदार व्यक्ति समाज में सम्मान प्राप्त करता है, जबकि एक धोखेबाज व्यक्ति निंदा का पात्र बनता है। जो विद्यार्थी मन लगाकर पढ़ाई करते हैं, परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं और अच्छा भविष्य बनाते हैं; वहीं जो लापरवाह रहते हैं, उन्हें पछतावा करना पड़ता है।

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक राल्फ वाल्डो एमर्सन ने कहा था—
“Cause and effect, means and ends, seed and fruit cannot be severed.”
(कारण और प्रभाव, साधन और साध्य, बीज और फल को अलग नहीं किया जा सकता।)

जीवन में जो कुछ भी हम करते हैं, वह एक बीज के समान है। हमारा हर कार्य एक प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। यदि हम प्रेम, दया, ईमानदारी और परिश्रम के बीज बोते हैं, तो भविष्य में हमें सफलता, संतोष और सम्मान की फसल मिलती है। यदि हम घृणा, धोखा, आलस्य और स्वार्थ के बीज बोते हैं, तो जीवन में संकट, असफलता और अपमान का सामना करना पड़ता है।

महाभारत काल में द्रौपदी का चीरहरण हो या कौरवों का अन्यायपूर्ण व्यवहार—आखिरकार महाविनाश और कुरुक्षेत्र के युद्ध के रूप में उनके कर्मों का फल सामने आया। वहीं श्रीकृष्ण ने जीवनभर धर्म, सत्य और न्याय का पालन किया, इसलिए वे आज भी पूजनीय हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
अर्थात् मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं; परंतु जैसा कर्म होगा, वैसा ही फल मिलेगा।

यह प्रकृति का अटल नियम है। नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र दोनों में इस सिद्धांत की पुष्टि की गई है। अगर कोई आज दूसरों की मदद करता है, तो भविष्य में जब वह कठिनाई में होगा, तो कोई न कोई अवश्य उसकी सहायता करेगा। यदि कोई दूसरों को कष्ट देता है, तो उसे भी कभी न कभी वैसा ही कष्ट भोगना पड़ता है।

वर्तमान समय में भी हम चारों ओर इसका उदाहरण देख सकते हैं। जो लोग अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं, नियमित व्यायाम करते हैं, संतुलित आहार लेते हैं, वे स्वस्थ रहते हैं। वहीं जो लापरवाह रहते हैं, अस्वास्थ्यकर आदतों को अपनाते हैं, उन्हें बीमारियों का सामना करना पड़ता है। जो युवा समय का सदुपयोग करते हैं, परिश्रम करते हैं, वे जीवन में सफलता अर्जित करते हैं। जो समय का अपव्यय करते हैं, उन्हें पछताना पड़ता है।

जीवन में अच्छाइयों का बीज बोने के लिए धैर्य, अनुशासन और सतत प्रयास की आवश्यकता होती है। यह एक दिन में नहीं होता, बल्कि वर्षों की तपस्या से होता है। जैसे एक किसान फसल उगाने के लिए बीज बोने के बाद उसे पानी देता है, खाद डालता है, निराई-गुड़ाई करता है, तभी जाकर वह अच्छी फसल पाता है; वैसे ही जीवन में भी निरंतर प्रयास आवश्यक है।

प्रसिद्ध अमेरिकी विचारक जेम्स एलेन ने लिखा है—
“As you sow, so shall you reap.”
(जैसा तुम बोओगे, वैसा ही काटोगे।)

यह कहावत हमें चेतावनी भी देती है कि हम अपने विचारों और कर्मों को सतर्कता से चुनें। हमारे छोटे-छोटे निर्णय, आदतें और व्यवहार भविष्य की दिशा तय करते हैं। अगर हम अभी से अपने जीवन में अच्छे संस्कार और सकारात्मक सोच अपनाएँ, तो आने वाला समय निश्चित ही सुखद और सफल होगा।

कभी-कभी लोग सोचते हैं कि बुरे कर्म करके वे बच निकलेंगे, परंतु सत्य यह है कि भले ही देर हो जाए, लेकिन फल अवश्य मिलता है। प्रकृति के न्याय में देरी हो सकती है, पर अन्याय कभी क्षमा नहीं होता। अतः हमें सदैव सत्कर्मों का चयन करना चाहिए और बुरे कार्यों से बचना चाहिए।

अंततः “जइसन बोअब ओइसने कटब” केवल एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन का शाश्वत सत्य है। यह हमें सिखाती है कि हमारा वर्तमान ही हमारे भविष्य की नींव है। हम जो आज करते हैं, वही कल हमारा परिणाम बनकर हमारे सामने आएगा। इसलिए हमें हमेशा सोच-समझकर, ईमानदारी और परिश्रम से अपने कर्मों का चयन करना चाहिए। तभी हमारा जीवन सुख, शांति और सफलता से परिपूर्ण हो सकेगा।

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