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आध्यात्मिक उन्नति तथा शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए योग की आवश्यकता और महत्त्व। (69th BPSC Essay)
“योग मन को शांत करने की कला है।” – महर्षि पतंजलि
योग भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। संस्कृत शब्द ‘योग’ का अर्थ ‘जोड़ना’ या ‘एकता स्थापित करना’ होता है, जिससे आशय आत्मा और परमात्मा के मिलन से है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है, जो मानसिक शांति और आध्यात्मिक प्रगति में सहायक होती है। योग का उल्लेख वैदिक साहित्य, उपनिषदों, भगवद्गीता और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त मूर्तियों में भी योगासन की मुद्राओं के प्रमाण मिलते हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। आधुनिक युग में, जब लोग तनाव, अवसाद और विभिन्न शारीरिक बीमारियों से जूझ रहे हैं, तब योग एक प्रभावी समाधान के रूप में उभरकर सामने आया है।
योग को महर्षि पतंजलि ने ‘अष्टांग योग’ के रूप में आठ भागों में विभाजित किया, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने में सहायक हैं। इनमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, योग के कई अन्य प्रकार भी प्रचलित हैं, जैसे हठयोग, राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कुंडलिनी योग। ये सभी प्रकार व्यक्ति की विभिन्न आवश्यकताओं और जीवनशैली के अनुरूप होते हैं।
योग शरीर को लचीला और ऊर्जावान बनाता है। यह हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, गठिया और अन्य बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक है। वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि नियमित योगासन और प्राणायाम करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग तनाव, चिंता और अवसाद से ग्रस्त हैं। ध्यान और प्राणायाम से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मानसिक शांति मिलती है। योग अभ्यास करने वाले व्यक्ति अधिक शांत, संयमित और आत्मविश्वासी होते हैं। यह केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मज्ञान और आध्यात्मिक विकास का भी माध्यम है। यह आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण को प्रेरित करता है, जिससे व्यक्ति अपने आंतरिक स्वरूप को पहचान सकता है।
आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में योग शारीरिक व मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है। लोग देर रात तक जागते हैं, अस्वस्थ खानपान अपनाते हैं और शारीरिक गतिविधियों से दूर रहते हैं, जिससे अनेक बीमारियाँ जन्म लेती हैं। योग इन समस्याओं के निवारण में सहायक सिद्ध हुआ है। कोविड-19 महामारी के दौरान, जब लोग मानसिक और शारीरिक रूप से अस्थिर हो गए थे, तब योग ने उन्हें स्वस्थ और सकारात्मक बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई शोधों में यह प्रमाणित हुआ कि योग और ध्यान करने वाले लोगों में तनाव और अवसाद की संभावना कम होती है।
21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव भारत ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में रखा, जिसे 177 देशों के समर्थन के साथ स्वीकार किया गया। 2015 से हर वर्ष यह दिन वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। इससे योग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली और दुनिया भर में योग केंद्र स्थापित किए गए। आज अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में योग अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है। कई चिकित्सा संस्थानों में भी योग को उपचार प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया है।
भारत सरकार ने योग के प्रचार-प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आयुष मंत्रालय की स्थापना कर योग और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा दिया गया। स्कूलों में योग शिक्षा को अनिवार्य करने की दिशा में प्रयास किए गए। विभिन्न राज्यों में ‘योग वेलनेस सेंटर’ स्थापित किए गए। योग पर शोध करने के लिए वैज्ञानिक संस्थानों को सहायता प्रदान की गई।
कुछ लोग योग को धर्म से जोड़कर देखते हैं, जिससे इसे लेकर कई बार विवाद उत्पन्न होते हैं। विशेष रूप से ‘सूर्य नमस्कार’ और मंत्रों के उच्चारण को लेकर आपत्तियाँ जताई जाती हैं। हालाँकि, योग एक सार्वभौमिक पद्धति है, जो किसी एक धर्म से जुड़ा नहीं है। इसे शारीरिक व्यायाम और ध्यान के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि किसी धार्मिक अनुष्ठान के रूप में।
योग न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन है। यह हमें संतुलित जीवन जीने की कला सिखाता है। आज के तनावपूर्ण वातावरण में योग एक अमूल्य धरोहर के रूप में हमारे समक्ष है, जिसे हमें अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। इसके व्यापक प्रसार और स्वीकार्यता से संपूर्ण मानव जाति लाभान्वित हो सकती है। अतः योग को केवल शारीरिक व्यायाम न मानकर, इसे एक संपूर्ण जीवनशैली के रूप में अपनाना आवश्यक है।
“जब सांसें गहरी होती हैं, तो मन शांत होता है; जब मन शांत होता है, तो जीवन सुखमय होता है।” – श्री श्री रविशंकर
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