पानी में मछरिया, नौ-नौ कुटिया बखरा (Paani mein machharia, nau-nau kutia bakharaa)

पानी में मछरिया, नौ-नौ कुटिया बखरा (68th BPSC Essay)

गाँव के एक छोटे से कस्बे में मोहन नाम का एक युवक रहता था, जिसे जल्दी से अमीर बनने की तीव्र इच्छा थी। उसने सुना कि स्टॉक मार्केट में निवेश करके लोग रातों-रात करोड़पति बन जाते हैं। यह सुनकर उसने बिना अधिक जानकारी और अनुभव के अपने जीवनभर की जमा पूँजी शेयर बाजार में लगा दी। उसने सोचा कि जल्द ही उसे भारी मुनाफा मिलेगा और वह आरामदायक जीवन जी सकेगा। लेकिन कुछ ही दिनों में बाजार में भारी गिरावट आई और उसका पूरा पैसा डूब गया। अब वह न तो पहले की तरह सामान्य जीवन जी पा रहा था और न ही अपने भविष्य के बारे में कोई ठोस योजना बना पा रहा था।

मोहन की यह कहानी एक महत्वपूर्ण जीवन संदेश देती है, जो मैथिली की प्रसिद्ध कहावत “पानी में मछरिया, नौ-नौ कुटिया बखरा” से मेल खाती है। इस कहावत का अर्थ है कि जब किसी वस्तु की प्राप्ति अभी निश्चित नहीं हुई है, तब ही उसके बँटवारे और लाभ की चर्चा करना व्यर्थ है। यह कहावत उन लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो बिना किसी ठोस आधार के सफलता के सपने बुनने लगते हैं और हकीकत से मुँह मोड़ लेते हैं।

समाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहाँ लोग बिना मेहनत किए ही सफलता की उम्मीद पाल लेते हैं और असफलता का सामना करते हैं। राजनीति में अक्सर ऐसा होता है कि चुनाव से पहले ही नेता अपनी जीत को सुनिश्चित मान लेते हैं और भविष्य की योजनाएँ बनानी शुरू कर देते हैं। वे सोचते हैं कि सरकार बनने के बाद वे कौन-कौन से बड़े कार्य करेंगे, किन्तु जब चुनाव परिणाम अपेक्षा के विपरीत आते हैं, तो उनकी सारी योजनाएँ धराशायी हो जाती हैं।

व्यापार के क्षेत्र में भी यही स्थिति देखी जा सकती है। कई बार लोग बिना उचित योजना और पूँजी के व्यापार शुरू कर देते हैं और यह सोचते हैं कि वे जल्द ही सफल हो जाएँगे। लेकिन जब उन्हें विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो वे हतोत्साहित हो जाते हैं और असफलता को ही अपना भाग्य मान लेते हैं।

शिक्षा और करियर के क्षेत्र में भी यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है। कई छात्र बिना पर्याप्त मेहनत किए ही अच्छे अंकों की उम्मीद रखते हैं और सोचते हैं कि परीक्षा के समय किसी भी तरह पास हो जाएँगे। लेकिन बिना मेहनत के सफलता नहीं मिल सकती। इसी तरह, कई युवा बिना आवश्यक कौशल और अनुभव प्राप्त किए ही ऊँचे पदों और बड़ी नौकरियों की उम्मीद करने लगते हैं, जबकि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।

यह कहावत हमें धैर्य और मेहनत का महत्व भी समझाती है। यदि कोई व्यक्ति सच में सफलता पाना चाहता है, तो उसे पहले मेहनत करनी होगी और फिर परिणाम की चिंता करनी चाहिए। यह विचार श्रीमद्भगवद्गीता के प्रसिद्ध श्लोक “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” से मेल खाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि मनुष्य को केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

इतिहास के पन्नों में झाँकें तो हम पाएँगे कि जिन व्यक्तियों ने परिणाम की चिंता किए बिना परिश्रम किया, वे ही महानता की ऊँचाइयों तक पहुँचे। महात्मा गांधी ने बिना किसी परिणाम की चिंता किए चंपारण आंदोलन का नेतृत्व किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस ने बिना किसी स्वार्थ के केवल अपने कर्म पर ध्यान दिया और इतिहास में अमर हो गए।

ऐसे ही वैज्ञानिक और विचारक भी इस बात के उदाहरण हैं कि धैर्य और मेहनत के बिना कोई बड़ी उपलब्धि संभव नहीं है। थॉमस एडीसन ने हजारों बार असफल होने के बावजूद बिजली के बल्ब का आविष्कार किया। अगर उन्होंने हर बार असफल होने पर फल की चिंता की होती, तो शायद यह आविष्कार कभी न हो पाता। इसी तरह, भारत के मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी कड़ी मेहनत और अनुशासन से अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।

आजकल लोग तेजी से सफलता प्राप्त करना चाहते हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव से युवाओं में यह धारणा बनती जा रही है कि रातों-रात अमीर और प्रसिद्ध हुआ जा सकता है। वे बिना मेहनत किए ही प्रभावशाली जीवन जीने के सपने देखने लगते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि कोई भी सफलता ठोस मेहनत और समय के बिना प्राप्त नहीं हो सकती।

अक्सर लोग व्यापार में बिना उचित योजना के निवेश कर देते हैं और यह सोचते हैं कि वे जल्द ही बड़ा मुनाफा कमाएँगे। लेकिन जब उन्हें नुकसान होता है, तब वे पछताते हैं। यही अधीरता समाज में कई बुराइयों को जन्म देती है। जल्दी अमीर बनने की चाह में लोग भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और अनैतिक साधनों का सहारा लेने लगते हैं, जिससे सामाजिक मूल्यों का पतन होता है।

“पानी में मछरिया, नौ-नौ कुटिया बखरा” कहावत हमें यह सिखाती है कि जब तक किसी चीज़ की प्राप्ति सुनिश्चित न हो, तब तक उसके बारे में योजना बनाना या उम्मीद पालना व्यर्थ है। यह अधीरता और असमय निष्कर्ष निकालने की प्रवृत्ति को उजागर करती है, जो कई बार असफलता और निराशा का कारण बनती है।

हमें यह समझना होगा कि सफलता कोई जादू नहीं है, बल्कि यह निरंतर परिश्रम, धैर्य और अनुशासन का परिणाम होती है। जब तक हम कर्म के मार्ग पर नहीं चलेंगे और धैर्य नहीं रखेंगे, तब तक सफलता की मंज़िल तक पहुँचना मुश्किल होगा। इसलिए, हमें केवल परिणाम की चिंता करने के बजाय अपने प्रयासों पर ध्यान देना चाहिए और मेहनत के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।

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