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भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों पर औचित्यपूर्ण प्रतिबंध का प्रावधान करता है किन्तु औचित्य को ध्यान में रखना चाहिए कि:
भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों पर औचित्यपूर्ण प्रतिबंध का प्रावधान करता है किन्तु औचित्य को ध्यान में रखना चाहिए कि:
I. सामान्य जन का हित संरक्षित हो।
II. विद्यमान सामाजिक मूल्य एवं सामाजिक आवश्यकताएँ अवरोध न हों।
III. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।
IV. सामूहिक हित व्यापक नहीं है।
(A) II और III सही है
(B) I और II सही है
(C) केवल IV सही है
(D) केवल I सही है
सही उत्तर: (B) I और II सही हैं (BPSC Ans D)
व्याख्या:
एनसीईआरटी कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘भारत का संविधान: सिद्धांत और व्यवहार’ में मौलिक अधिकारों पर लगाए गए उचित प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है। आइए इन बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं:
मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं
पाठ्यपुस्तक में यह स्पष्ट किया गया है कि मौलिक अधिकार पूर्ण या असीमित नहीं होते हैं। सरकार इन अधिकारों के प्रयोग पर ‘उचित प्रतिबंध’ लगा सकती है। हालाँकि, इन प्रतिबंधों की वैधता के लिए कुछ आधारों का होना ज़रूरी है।
कथन I: सामान्य जन का हित संरक्षित हो
यह कथन सही है। एनसीईआरटी के अनुसार, मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध का एक मुख्य आधार ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘नैतिकता’ और ‘सामान्य जन के हित’ जैसे कारण होते हैं।
- पृष्ठ संख्या 27 पर अनुच्छेद 19 (1) के तहत दी गई स्वतंत्रता पर, अनुच्छेद 19 (2) में सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, और ‘सामान्य जन के हित’ जैसे आधारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान बताया गया है।
- उदाहरण: किसी व्यक्ति को धार्मिक सभा करने का अधिकार है, लेकिन यदि वह सभा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करती है या लोगों के बीच वैमनस्य फैलाती है, तो उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
कथन II: विद्यमान सामाजिक मूल्य एवं सामाजिक आवश्यकताएँ अवरोध न हों
यह कथन भी सही है। एनसीईआरटी बताती है कि सरकार मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाते समय समाज के नैतिक मूल्यों और सामाजिक आवश्यकताओं का ध्यान रखती है।
- पृष्ठ संख्या 36 पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की चर्चा करते हुए यह समझाया गया है कि सरकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए धर्म से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है।
- उदाहरण: सरकार सती प्रथा या बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए कानून बना सकती है, भले ही कुछ लोग इसे अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप मानें।
कथन III: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है
यह कथन सही नहीं है। एनसीईआरटी इस बात पर बल देती है कि नीति निदेशक सिद्धांत देश के शासन के लिए मौलिक हैं।
- पृष्ठ संख्या 39 पर मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक सिद्धांतों के संबंधों पर चर्चा की गई है। यह स्पष्ट किया गया है कि हालाँकि नीति निदेशक सिद्धांत अदालतों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, फिर भी सरकार के लिए कानून बनाते समय इनका पालन करना अनिवार्य होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई मामलों में यह माना है कि नीति निदेशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए कुछ मामलों में मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिससे पता चलता है कि इन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
कथन IV: सामूहिक हित व्यापक नहीं है
यह कथन भी सही नहीं है। एनसीईआरटी का दृष्टिकोण यह है कि समाज में अधिकारों का उद्देश्य व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन स्थापित करना है, जिसमें सामूहिक हित को प्राथमिकता दी जाती है।
- पृष्ठ संख्या 26-27 में स्वतंत्रता के अधिकार पर चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि प्रत्येक स्वतंत्रता सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के अधीन होती है। ये प्रतिबंध व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यापक सामूहिक हित के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।
- यदि सामूहिक हित व्यापक न होता, तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को असीमित माना जाता, जबकि भारतीय संविधान में ऐसा नहीं है।
सही उत्तर की पुष्टि
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, केवल कथन I और II ही सही हैं। इसलिए, सही विकल्प (B) है, जो बताता है कि I और II सही हैं।
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